jayashankar prasaad kee puraskaar | जयशंकर प्रसाद की "पुरस्कार" कहानी

जयशंकर प्रसाद की "पुरस्कार" कहानी

"पुरस्कार" कहानी जयशंकर प्रसाद की आदर्श रचनाओं में अपने प्रमुख स्थान रखती है इस कहानी में प्रसाद जी ने राष्ट्र के ऊपर व्यक्तिगत प्रेम के उत्सर्ग का आदर्श पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया है कहानी कला के तत्वों के आधार पर पुरस्कार कहानी की समीक्षा इस प्रकार है। 

"पुरस्कार" कहानी कथानक 

"पुरस्कार" कहानी का कथानक ऐतिहासिक आधार पर गठित किया गया है, किंतु इसमें कल्पना का अनुपम संयोग करके इसे भाव प्रधान एवं यथार्थउन्मुख आदर्शवादी स्वरूप प्रदान किया गया है जिसमें प्रेम एवं कर्तव्य तथा वैक्तिकता और राष्ट्रीयता के संतुलन का अनूठा पन देखने को मिलता है। 

कहानी की नायिका मधुलिका मगध के राष्ट्रीय पर्व पर अधिग्रहित अपनी भूमिका प्रतिदान राजा से नहीं लेती। इस प्रकार वह स्वाभिमानी बाला राजाज्ञा के कारण अपने पूर्वजों की भूमि गंवाकर दीन हीन दिशा में जीवन यापन करती है कुछ समय बाद युवराज अरुण उसके पास पुनः आता है और उसके प्रेम के वशीभूत होकर मधुलिका राष्ट्रीय हित को भूल जाती है यद्यपि उसके अंतर्मन में व्यक्तिगत लाभ एवं राष्ट्रहित तथा प्रेम एवं कर्तव्य के बीच संघर्ष चलता है, तथापि अंततः विजय सत्य की ही होती है और राष्ट्रीयता की भावना स्वार्थ की भावना पर हावी हो जाती है वह सेनापति को सब कुछ बता देती है जहां तक कहानी का कथानक मधुलिका के व्यक्तित्व के आंतरिक अंतर्द्वंद चित्रित करता है और कर्तव्य को प्रेम पर विजय प्राप्त करते हुए दर्शाता है कथानक का यह विकास कहानी में प्रभाव उत्पन्न करता है किंतु इसका अंत सबसे अधिक मार्मिक और प्रभाव कारी है। मधुलिका कर्तव्य निर्वाह के लिए अपने प्रेम को राष्ट्रपति पर निर्वाह कर देती है, किंतु उसके व्यक्तित्व का चरम विकास कथा के समापन में ही दिखाई देता है जहां वह अपने प्रेम के गौरव की रक्षा हेतु आत्मोत्सर्ग के लिए भी प्रस्तुत हो जाती है। समापन की यह द्वंदमयता प्रसाद जी की एक निजी विशेषता है जो कथानक के मर्मान्तक प्रभाव छोड़ने वाला बनाती है।

"पुरस्कार" कहानी का शीर्षक 

कहानी का शीर्षक कहानी की आत्मा को स्पष्ट करता है उपयुक्त सिद्ध हुआ है जो मधुलिका की चारित्रिक विशेषताओं को स्पष्ट करने वाले इस कथानक के लिए पूर्णता उपयुक्त है यह वस्तु व्यंजक होने के साथ-साथ सांकेतिक भी है इसका सीधा सीधा संबंध कहानी की मूल चेतना से है और इसमें कहानी का केंद्र बिंदु स्वयं में सीमट आया है। 
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